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ब्राह्मण, सामाजिक न्याय के दौर का सबसे अभिशप्त शब्द। भारतीय परिवेश में सामाजिक न्याय ठीक वैसे ही दूषित है जैसा धर्मनिरपेक्षता। और इन दूषित शब्दों के बीच फंसा है ब्राह्मण। ब्राह्मण, जिन्हें धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय, दोनों का ही दोषी माना गया है। मैं जातिवाद का धुरविरोधी हूं, किन्तु जब तक मेरे देश के सरकारी प्रपत्रों में जाति का कॉलम रहेगा, जातिवाद भी जीवित रहेगा। आजादी के ७३ सालों के बाद भी अगर सामाजिक न्याय राजनैतिक मुद्दा बना रहे तो वह सामाजिक न्याय रास्ता भटक चुका है। सामाजिक न्याय के अनेकानेक पुरोधा स्वयं सामर्थ्यवान हो चुके हैं और अपनी कई पुश्तों के लिए पूंजी जोड़ चुके हैं। अब बात न्याय की करते हैं। न्याय आप किस से और कब लेते हैं? अगर एक समुदाय के एक व्यक्ति का कोई दोष हो तो क्या आप उस समुदाय को दोषी मानते हैं? नहीं ना। तो फिर कुछ पीढ़ियां पहले दिए गए त्रास के लिए आज की पीढ़ी के लोगों से बदला कैसा? सामाजिक बुराइयों के लिए ब्राह्मणों को अक्सर दोष दिया जाता है। कुछ हद तक ठीक भी है। क्यूंकि छुआछूत जैसी भ्रांतियां अभी भी देश में है। मगर छुआछूत अब शहरों में, विद्यालयों और संस्थान
आज मुझे देर हो रही थी। कायदे से तो मैं समय से पंद्रह बीस मिनट पहले ही चल रहा था, मगर रिक्शे के गुज़र जाने का समय हो चुका था। सोमवार से शुक्रवार, बस एक नजर भर देखना मानो कोई पुरानी रिवायत जैसी थी, जिसे मन, बिना सवाल किए, रोज निभाने को दृढ़संकल्प था। मैं हड़बड़ाहट में घर से निकला, साइकिल उठाई और इस उम्मीद में कि वो रिक्शा भी लेट हो, चल पड़ा। थोड़ी दूर पर वो रिक्शा नजर आया और उसमें बैठी वो भी, जिसका नाम भी मुझे नहीं पता, मगर जो अनजान भी नहीं थी। सुकून से भरा मैं, अपने गंतव्य की ओर चल पड़ा।
The hostel life is memorable for everyone. The freedom, the responsibility and need to standup for yourself, makes you better equipped to take on the world. I’ve been lucky to spend my last few years of studies in hostels and that too in the best ones available in India, the BIT Mesra Hostels. The abode to exuberant individuals, all amazing, different from each other. Few of my best friends are my hostel mates. The hostels in BIT gives you the feel of a glorified prison sometimes. The reason being, its distance from the city and outside world. The seclusion does helps you get along with the other prison mates well. During my stay in BIT, there were no mobile data and mobile internet. Orkut was yet to become a hit and Facebook was yet to be conceptualized. Sports, meals-together, interaction sessions, quizzes, studies, chit-chats kept us involved. Luckily, those days were less virtual. Even computer games needed physical presence of the opponents, barring some, with their networkin